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Hari Baba ( हरि बाबा )

Source: https://www.facebook.com/BharatKeMahanYogi/

भारत भूमि सदा से ही अनेकानेक दिव्य संतों और योगियों कि तपस्थली और लीला क्षेत्र रही है। यहाँ समय समय पर अनेक दिव्य महात्माओं ने अपने चरणकमलों की दिव्य रज से इसे पवन किया है और इस सम्पूर्ण धरा के समस्त चराचर जीवों का कल्याण किया है। ऐसी अनेक विभूतियाँ आज भी गुप्त रूप में यहाँ निवास करती हैं तथा उचित अवसर पर प्रायः जनकल्याण के लिए जनसाधारण के बीच आकर उन्हें परमात्म पथ पर प्रेरित करती हैं।


इसी श्रृंखला में इन दिव्य मणियो की माला के एक परम आदरणीय वन्दनीय और इश्वरप्राप्त मनके हुए हैं --- श्री हरि बाबा जी। इनका अधिकांशतः लीला क्षेत्र उत्तर प्रदेश के गंगा तटीय क्षेत्र में संभल के आस पास रहा है। बीसवीं सदी के योगियों में आपश्री का नाम भी आता है जिन्होंने साधना और जनसेवा का एक और अद्वितीय उद्धरण पेश किया और मानवसेवा को ही सच्ची परमात्मसेवा बताया और अपने जीवन से इसे चरितार्थ भी किया।

इस क्षेत्र को खादरक्षेत्र कहा जाता है। यहाँ अक्सर बरसात के दिनों में नदी कि बाढ़ में सैकणों गाव बह जाया करते थे। तब खेवनहार बनकर श्री हरि बाबाजी यहाँ अवतरित हुए। इनके मूल जन्मस्थान तथा माता-पिता के बारे में तो पूर्ण जानकारी नहीं मिल पायी परन्तु खादरवासियों के लिए बाबा स्वयं ईश्वर का अवतार हैं जो शरीर मै हम खादरवासियों का कल्याण करनें हेतु आए। बाबा का मूल नाम श्री श्री १००८ श्री दीवान सिंह जी था परन्तु वे हरी नाम का इतना अधिक जप सुमिरण। संकीर्तन करते थे की उनका नाम परम आदरणीय श्री श्री १००८ श्री हरि बाबा जी महाराज पड़ गया।


बाबा की सहस्रों लीलाओं में से एक है बाँध धाम का निर्माण कराना। गंगा नदी में बाढ़ आने पर 700 ग्राम जलमग्न हो गए जिस घटना नें कोमल हृदय श्री हरि बाबा जी महाराज को अंदर तक हिला दिया और तब उन्होंने संकल्प लिया और बिना किसी सरकारी सहायता के गंगा नदी पर 45 किलोमीटर लम्बा बाँध केवल सत्संग के आधार पर बना दिया। इस में उन्होंने गरीबों से श्रम दान लिया था यह चमत्कार केवल इश्वर भक्त ही कर सकते हैं। और इस बाँध पर पैंतालीस वर्ष से आज भी अनवरत अखंड हरि नाम संकीर्तन चल रहा है। शायद ही विश्व मै एसा कोई दूसरा पावन धाम हो जहाँ 45 वर्ष से अनवरत हरिनाम आनंद वर्षा हो रही हो।


यहाँ के निवासियों में एक दिव्य मधुरता और कोमलता है। उनका मृदुल व्यवहार आज भी बाबाजी कि वहां उपस्थिति को चरितार्थ करता है। हर तरफ हरे राम हरे राम का मधुर नाद गुंजायमान रहता है जो प्रेम और भक्ति कि अखंड गंगा बहाता हुआ जन-जीवन के तन और मन को पवित्र करता हुआ प्रभु प्रेममय जीवन बिताने के साथ साथ कर्तव्य-पथ पर निरंतर बढ़ते रहने कि प्रेरणा देता है।


एक संस्मरण जो बाबाजी के परमभक्त ने अपने ज्येष्ठ भ्राता से सुना --- "श्री हरिबाबा जी महाराज की विनय शीलता अद्भुत थी ज्ञात होता है कि बाबा साधारण संतों को भी दंडवत प्रणाम कर सम्मान किया करते थे यही नहीं किसी के कुछ कहनें पर भी बाबा विनय में संलिप्त हो कर अपनी ही भूल भी स्वीकार कर लिया करते थे क्या कहा जाय उन कृपानिधि काे, विनय हिमाचल कहनें से भी बाबा की विनयशीलता का आभास न हो सकेगा। बाबा की विनयशीलता के प्रति माँ आनंदमयी के आश्रम की एक घटना है। --- एक बार भवसागर के अंधकार को नष्ट करनें वाले परमतत्व परम आदरणीय श्री श्री १००८ श्री हरि बाबा जी महाराज अंन्य भक्तोँ के साथ माँ आनंदमई के आश्रम मेँ उपस्थित थे। तब परम आदरणीय श्री हरि बाबा जी महाराज से माँ आनंदमई के किसी भक्त ने माँ के विषय मेँ दो शब्द कहने के लिए कहा इस आग्रह पर हमारे परम पूज्य आदरणीय बाबा ने माँ के विषय मेँ बहुत ही विनय पूर्वक कहा कि हे भाई माँ के विषय मेँ जो कुछ भी कहा जाए वह कम है वे तो एक जीवन मुक्त महापुरुष है उनकी महिमा भला किस प्रकार कही जा सकती है बाबा के ऐसा कहने पर माँ आनंदमई का एक भक्त जो माँ आनंदमई मेँ साक्षात जगतजननी जगदंबा का भाव रखता था अपने स्थान पर खड़ा हो गया और बाबा से बोला यह तो आप मेरी माँ का अपमान कर रहे हो माँ जीवन मुक्त महापुरुष नहीँ साक्षात जगत जननी माँ भगवती हैँ। इस पर हमारे विनय मूर्ति परम आदरणीय संत शिरोमणी महाराज जी ने उसी वक्त लेटकर उस भक्त को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और कहा भाई मुझसे भूल हो गई मैने आप लोगोँ के भाव का ध्यान नहीँ रखा। स्वामी अखंडानंद सरस्वती जी कहते हैँ कि बाबा की ऐसी विनय देखकर मैँ आश्चर्य चकित रह गया।"

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